Friday, September 16, 2011

na samajh dil...

बस  इतना  ही  याद  है  मुझको  ...
कुछ  ऐसा  हुआ  था ...
जब  छाया  था कोहरा  उस  जगह ...
लोगों  की  समझदारी  पर पर्दा  पड़ा  था....

ना  जाने  क्यूँ  ऐसा हुआ था...
धुप  खुली  थी  मौसम  साफ़  था...
पर ना जाने  समां  थोडा  धुन्दला  सा  था..
उसने कुछ नहीं कहा मगर मैंने ही समझ लिया..
न जाने क्यूँ हमको ही धोका हुआ था ....

लाख समझा के चले थे दिलको अपने...
की न जाया कर उस डगर ...
जहाँ मंजिल नहीं हो..
मगर देखो अनसुना कर मुझे ये दिल भी...
धुंए की तरह हवा में बह गया..





  





Thursday, September 15, 2011

Kavita...

कविता  क्या  है ...???
सच  है  या  फिर  कल्पना ...
अपने  में  समेटे  शब्दों  का  जाल  है ...
या  अंतर  मन  की  आवाज़ ...
कविता  दर्द -ए- दिल  की  पुकार  है ...
या  छुपे  हुए  एहसास  की  एक  मार ...
किसी  कवी  का  प्यार  है ...
या  उसका  कोई  विचार ...
भुजा  हुआ  अंगार  है ...
या  बहता  हुआ  जज़्बात ...
ये  गूंगों  की  भासा  है ...
या  है  वजूद  की  तलाश ...
हर  वक़्त  को ..
हर  हालात  को  बयान  करने  वाली  कविता ...
क्या  महज  एक  कविता  है ...
या  महज  एक  कवी  की  रचना ....

ये द्वन्द यहीं ख़तम हो जाये अगर इतना कहूं के 
ये कविता हर दिल का साज़ है..
ये न भुजने वाली एक आग है..
न समझ भी इस शब्द  जाल को समझ लेता है...
समझदार इसको सुर बना देता है...
कविता नाम नहीं महज कुछ शब्दों को मिलाने का..
ये तो एक तरीका है अपने खयालातों को कागज पर  उतरने का...








Saturday, September 10, 2011

Kal ki Baat...

आज  बारिश  को  देख  कर  लगा ...
जैसे  ये  कल  ही  की  तो  बात  थी  ....
पानी  की बूंदों  को देख कर मन  मचल  उठा ...
खिल  उठा छोटे  बच्चे  की तरह ....
वो  फूलों  का  मुस्कुराना ...
पंछियों  का  अपने  घर  लौट  जाना ...
मोर  का ख़ुशी   का इज़हार  करना ...
बिजली  का गरजना ..
झूम  के   बादलों  का बरसना ....
हर  बूँद  में  एक  नयी  ख़ुशी का आना ....
जैसे ये कल ही की तो बात थी ....
जब  ऐसे   ही किसी  समय  में हम  दोनों  साथ  थे ...
वो गीली  सड़कें , वो मिटटी  की सुगंध ....
वो भीगी  हुई  तुम ....और  भीगा  सा  मैं ....
वो तेरा  मेरी  बाँहों  में सिमटना ...
वो बारिश में सुनी  सड़कों  पर  थामे  हाथ  को चलना ...
बस  ऐसा  कल ही तो था ...जब तू  मेरा  अपना  था....
बारिश हुई...आज भी  वैसे  ही हुई....
कुछ  भी ना  बदला ....
पर कौनसी सी  ऐसी  बात  है जो  एहसास  कराती  है....
तेरे  मौजूद  ना होने  का इशारा   सा दे  जाती है....
तन्हाई  तो आती  है जाती....
एक लम्हे  में ये जिन्दगी  ना जाने  क्या  कह  जाती है....
इतना  नहीं  सोच  पा   रहा  हूँ  में आज ...
ना जाने क्यूँ  ...में भूल  सा गया   हूँ कल  की बात....
आज एक नया  सा अनुभव  है....
एक अजीब  सी खुसी है इस  बारिश में....
आज मैं बहुत  भींगा  हूँ मन मेरे ...
सारे  गम  तर  हो  गए  ना जाने बूंदों के साथ कहाँ  खो  गए....
आज बारिश ने  मेरा तन  बदन  सब  भीगा  दिया  है....
आज एक नया अनुभव सा मुझे दिया है....

Sunday, September 4, 2011

lamhoin ki taseer...

आज  तो  मुझको  कुछ  बतलाने  दो ...
 खुल  कर  अपने  खाव्बों  में  उड़  जाने  दो...

लम्हा  ये  बीत  जाने दो..
जीत  को  भी  आज हार  से  हार  जाने दो...
ख़तम  करो  जो  भी झगडा  है ...
जो भी गलत  का पर्दा  है..
मुझको उसे  हटाने  दो...
धुप में अपने पाँव जला  रहा  हूँ ..
मेरे  पाँव के छालो  को दरिया  में धुल  जाने दो...

बस  आज मुझको तुम  बतलाने दो..
अपने खाव्बों में यूँ  उड़  जाने दो..
जो बेबसी  की  ज़ंजीर  बंधती  हैं  बेडिया ...
उनको  भी आज टूटना  पड़ेगा ...
नहीं  कहा  जो मैंने ..
आज मुझे  कहना  पड़ेगा..
हर  एक  लम्हा जो जिया  है तेरे साथ ..
यादों  में वो  हमेशा  रहेगा ...

चहाता  में भी हूँ...
एक बार  अपनी  बात  बोल दूँ ..
पर  लम्हों  के साथ मुझे  ऐसे  ही  बह  जाने दो...    
वक़्त  के साये  से उन  घावों  को भर  जाने दो...
कहीं  कोहरे   की धुन्ध  में उस  परछाई  को खो  जाने दो...

क्यूंकि  उड़ना  है मुझे हकीक़त  में..
तो अपनी खाव्बों  की तासीर  मुझे बयां  कर जाने दो...