Sunday, September 4, 2011

lamhoin ki taseer...

आज  तो  मुझको  कुछ  बतलाने  दो ...
 खुल  कर  अपने  खाव्बों  में  उड़  जाने  दो...

लम्हा  ये  बीत  जाने दो..
जीत  को  भी  आज हार  से  हार  जाने दो...
ख़तम  करो  जो  भी झगडा  है ...
जो भी गलत  का पर्दा  है..
मुझको उसे  हटाने  दो...
धुप में अपने पाँव जला  रहा  हूँ ..
मेरे  पाँव के छालो  को दरिया  में धुल  जाने दो...

बस  आज मुझको तुम  बतलाने दो..
अपने खाव्बों में यूँ  उड़  जाने दो..
जो बेबसी  की  ज़ंजीर  बंधती  हैं  बेडिया ...
उनको  भी आज टूटना  पड़ेगा ...
नहीं  कहा  जो मैंने ..
आज मुझे  कहना  पड़ेगा..
हर  एक  लम्हा जो जिया  है तेरे साथ ..
यादों  में वो  हमेशा  रहेगा ...

चहाता  में भी हूँ...
एक बार  अपनी  बात  बोल दूँ ..
पर  लम्हों  के साथ मुझे  ऐसे  ही  बह  जाने दो...    
वक़्त  के साये  से उन  घावों  को भर  जाने दो...
कहीं  कोहरे   की धुन्ध  में उस  परछाई  को खो  जाने दो...

क्यूंकि  उड़ना  है मुझे हकीक़त  में..
तो अपनी खाव्बों  की तासीर  मुझे बयां  कर जाने दो...

4 comments:

Nishant gupta said...

Bro reallly its damn gud!! Tujhe na book likhni chahiye!!!
That wud b so good,, jus write collection of poetries!

Nikhil aka NiKk said...

bhai thansk fr d suggestion...sooner or later will do the same....

Deepali said...

awesooooooome nikhil... keep posting...ur evry poem brings fresh memories.. !!

Nikhil aka NiKk said...

@deepali...thanx again ;-)

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