बस इतना ही याद है मुझको ...
जब छाया था कोहरा उस जगह ...
लोगों की समझदारी पर पर्दा पड़ा था....
ना जाने क्यूँ ऐसा हुआ था...
धुप खुली थी मौसम साफ़ था...
पर ना जाने समां थोडा धुन्दला सा था..
उसने कुछ नहीं कहा मगर मैंने ही समझ लिया..
न जाने क्यूँ हमको ही धोका हुआ था ....
लाख समझा के चले थे दिलको अपने...
की न जाया कर उस डगर ...
जहाँ मंजिल नहीं हो..
मगर देखो अनसुना कर मुझे ये दिल भी...
धुंए की तरह हवा में बह गया..