Friday, September 16, 2011

na samajh dil...

बस  इतना  ही  याद  है  मुझको  ...
कुछ  ऐसा  हुआ  था ...
जब  छाया  था कोहरा  उस  जगह ...
लोगों  की  समझदारी  पर पर्दा  पड़ा  था....

ना  जाने  क्यूँ  ऐसा हुआ था...
धुप  खुली  थी  मौसम  साफ़  था...
पर ना जाने  समां  थोडा  धुन्दला  सा  था..
उसने कुछ नहीं कहा मगर मैंने ही समझ लिया..
न जाने क्यूँ हमको ही धोका हुआ था ....

लाख समझा के चले थे दिलको अपने...
की न जाया कर उस डगर ...
जहाँ मंजिल नहीं हो..
मगर देखो अनसुना कर मुझे ये दिल भी...
धुंए की तरह हवा में बह गया..





  





2 comments:

deepali said...

hmmm... kaffi different... unlike d usual ur compositions.. but nicee

Nikhil aka NiKk said...

yaaa... bcz of the valuable comments !!! thanks... ;-)

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